Indian Culture – Shishir Kant Singh https://shishirkant.com Jada Sir जाड़ा सर :) Tue, 23 Jun 2020 08:58:21 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.9 https://shishirkant.com/wp-content/uploads/2020/05/cropped-shishir-32x32.jpg Indian Culture – Shishir Kant Singh https://shishirkant.com 32 32 187312365 भारतीय संस्कृति के कई रूप https://shishirkant.com/indian-culture/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=indian-culture Tue, 23 Jun 2020 08:54:24 +0000 http://shishirkant.com/?p=1921

भारतीय संस्कृति के कई रूप हैं जिसकी तुलना आपस में नहीं की जा सकती है। ये भारतीय संस्कृति बनाई किसने ? शायद हमारे विद्वानो ने या शायद विद्वानो के अलग-अलग संगठनो ने। जिसको जैसा अच्छा लगा वैसा संस्कृति की परिभाषा विकसित कर दी। तभी तो भारत में बहुत अलग-अलग संस्कृति फैली हुई है और हम अपना मन रखने के लिए बोलते हैं की भारत “अनेकता में एकता ” वाला देश है। आजकल हम दूसरे देशों की संस्कृति को अपना रहे हैं शायद उनकी संस्कृति हमारी संस्कृति से ज्यादा अच्छी हो। और उसके बाद भारत में एक और विद्वान आएगा और उनके तौर-तरीको को अपने भारत के तौर-तरीको से जोड़कर हमारी संस्कृति की नई परिभाषा बना देगा . शायद हमारे पूर्वज विद्वानो ने भी ऐसा कर रखा हो,लेकिन हमारे यहाँ पूर्वजो पर बात/व्यंग करना पाप माना जाता है तो मैं पाप का भागिदार नहीं बनना चाहता हूँ।

वैसे कहा जाता है की परिवर्तन ही समय की मांग होती है और ये जरूरी भी है। हमारी संस्कृति विश्व की सबसे पुरानी सभ्यता और संस्कृति है, लेकिन आज उसी सभ्यता को को हम लोग पूरी तरह नकारने में लगे हैं , क्योंकि शायद हमारे लोग शायद ये समझते हैं की भारतीय सभ्यता आधुनकिता की विरोधी है। लेकिन मेरा मानना है की लोग आधुनिकता और पश्चिमता (पश्चिम सभ्यता ) के बीच सही अन्तर नहीं कर पा रहे हैं। लोग आधुनिकता के नाम पर पश्चिमी सभ्यता की गलत सोच या गलत चीज़ों का अनुसरण कर रहे हैं। हर संस्कृति और हर देश की अपनी-अपनी सभ्यता और चरित्र हैं और सबमे सही और बुरी चीज़ें होती हैं , जैसे की भारत में “सती प्रथा” जैसी गलत प्रथा थी जो बाद में ख़त्म कर दी गयी। वैसे बहुत से कारण हो सकते हैं की हमारे लोग पश्चिमी सभ्यता की अच्छी चीज़ों के स्थान पर बुरी चीज़ों को क्यों अपना रहे हैं ? लेकिन मेरा मानना है की इसमें पलायन जैसे मुद्दों की कमी है। जब हम वाद-विवाद करते हैं तो विषय की सकारात्मक और नकारात्मक बातों पर बहस होती है और उसके बाद कुछ सकारात्मक बातें निकलती हैं जिस पर सभी लोग सहमत होते हैं।

वैसे ही जब एक देश की संस्कृति दूसरे देश की संस्कृति से मिलती है तो दोनों देश एक-दूसरे की अच्छी बातों का अनुसरण करना चाहते हैं या करने लगते हैं। जैसे की भारत में सिर्फ एक संस्कृति और एक धर्म हुआ करता था लेकिन समय-समय पर दूसरी विचारधारा और अलग धर्म के लोग भारत में आये और भारत अनेक संस्कृतियो का गवाह बनता चला गया। इसकी शुरुआत आर्यन के आने से हो चुकी थी। भारत में पहले द्रविडं हुआ करते थे जो की मूर्ति पूजन किय करते थे। लेकिन आर्यन ( जो की अफगानिस्तान की तरफ से आये थे ) आग की पूजा किया करते थे , भारत में घुमते हुए आये और द्रविडं को भगाने लगे। आज कहा जाता है की उत्तरी भारत में आर्यन की छाप है और दक्षिण भारत में द्रविडं की छाप है। लेकिन हमारे देश ने दोनों की संस्कृति को अपनाया और मूर्ति और आग दोनों की पूजा होने लगी। भारत में अनेक सभ्यता के लोग आये और उन्होंने हम लोगो को बहुत कुछ दिया और बहुत कुछ भारतीय सभ्यता से सीखा। उस समय सभी सभ्यता और संस्कृति अपना प्रचार प्रसार किया करते थे।

भारत में आज भी विदेशों से लोग आधायत्म की खोज में भारत आते हैं और पूरा अनुसरण करते हैं जो की पलायन जैसे पहलु को और पुख्ता करता है। लेकिन आज हमारे नौजवान बिना सोचे समझे अपने फायदे और आनंद के लिए पश्चिमी सभ्यता को अपनाते चले आ रहे हैं। कहीं न कहीं इसकी शुरुआत हमारे आधुनिक विधालय और कॉलेजों से हो रही है। जैसे की लड़कियों की वेशभूषा को ही लीजिये , हमारे लड़कों के लिए पुरे कपड़ें होते हैं लेकिन स्कूल में लड़कियों के लिए स्कर्ट होती है जो पहले से बहुत छोटी होती जा रही है। शायद हमारे आधुनिकता वाद नियम कानून बनाने वाले पढ़े-लिखे लोग समझते हों की लड़कियां पुरे ढके वस्त्रों में पढ़-लिख नहीं सकती। शायद ये उनकी ये मानसिकता हो की कैसे हम अपने को अंध विश्वासी आधुनिकता के सर्वेसर्वा बन सकते हैं ?

आज बच्चो के टिफिन में जंक फ़ूड ने पूरी तरह से अपना दबदबा बना लिया है और रोटी लाने वाले बच्चों को घृणा की नज़रों से देखा जाने लगा है। बच्चे क्या , हमारे नौजवानों ने भी भारतीय खान-पान को नकारते में लगे हुए हैं। भारत जैसे कृषि प्रधान देश में आज रोटी का स्थान बर्गर , पिज़्ज़ा ने ले लिया है , दूध का स्थान चाय और कॉफ़ी ने , जूस का स्थान शराब ने और हुक्का का स्थान सिगरेट ने ले लिया है। ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं जो हम अपने नौजवानों के बारें में सोचते हैं। मेरा मानना है की भारतीय संस्कृति को बिगाड़ने में हमारे टेलीविज़न का अहम योगदान है। आज हमारे टेलीविज़न से भारतीय कला , नाट्य-शास्त्र , नाटक इत्यादि गायब हो चुके हैं और उनका स्थान फूहड़ता फ़ैलाने वाले नाटक , प्रचार और फिल्मो ने ले लिया है। आज हमारा समाज इस फूहड़ता को आज़ादी और अधिकार का नाम देता है, और उनकी वकालत करने वाले हमारे मानवाधिकार और कुछ बुद्धिजीवी लोग हैं जिनका काम सिर्फ उथल-पुथल पैदा करना है। लेकिन शायद हमारे बुद्धिजीवी जिस आज़ादी के दम पर भारतीय संस्कृति पर वार कर रहे हैं , उस आज़ादी की भी एक सीमा है। इस सीमा को पार करने पर सेक्शन १९(२) के अनुसार सजा का प्रावधान भी है। जब कोई इस फूहड़ता के खिलाफ आवाज उठाता है तो हमारा समाज उसको दकियानूसी सोच वाला करार दिया जाता है की जैसे उसने भारत माता के खिलाफ बोल दिया हो।

अब आपको ये सोचना है की दकियानूसी अपने समाज के लिए कौन है ? और पहले आधुनिकता और पश्चिमी सभ्यता के बीच सही अंतर करना है। ये काम मैं नहीं कर सकता और न ही आप अकेले कर सकते हैं , ये काम हम सभी लोग मिलजुल कर धीरे-धीरे कर सकते हैं।

Shishir Kant Singh (शिशिर कान्त सिंह)

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