corona – Shishir Kant Singh https://shishirkant.com Jada Sir जाड़ा सर :) Fri, 05 Jun 2020 14:02:18 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.9 https://shishirkant.com/wp-content/uploads/2020/05/cropped-shishir-32x32.jpg corona – Shishir Kant Singh https://shishirkant.com 32 32 187312365 कोरोना और विश्व अर्थव्यवस्था https://shishirkant.com/%e0%a4%95%e0%a5%8b%e0%a4%b0%e0%a5%8b%e0%a4%a8%e0%a4%be-%e0%a4%94%e0%a4%b0-%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%b5-%e0%a4%85%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%a5%e0%a4%b5%e0%a5%8d%e0%a4%af%e0%a4%b5/?utm_source=rss&utm_medium=rss&utm_campaign=%25e0%25a4%2595%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258b%25e0%25a4%25a8%25e0%25a4%25be-%25e0%25a4%2594%25e0%25a4%25b0-%25e0%25a4%25b5%25e0%25a4%25bf%25e0%25a4%25b6%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25b5-%25e0%25a4%2585%25e0%25a4%25b0%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25a5%25e0%25a4%25b5%25e0%25a5%258d%25e0%25a4%25af%25e0%25a4%25b5 Fri, 05 Jun 2020 14:02:13 +0000 http://shishirkant.com/?p=1812 जब 2020  की शुरआत हुई थी, उस समय अमेरिका की अर्थव्यस्था  अपने निरंतर विस्तार के 126 वे महीने में प्रवेश कर रही थी। ये अमेरिका के इतिहास में आर्थिक प्रगति का सबसे लम्बा दौर था।  उस समय कई  निवेशक और बड़ी कंपनियों के अधिकारी गुपचुप तरीके से ये सवाल उठा रहे थे की, अमेरिका की आर्थिक प्रगति का ये दौर कब तक चलने वाला हिअ ? आखिर वो कौन सी वजह होगी जो हमें अंततः एक बार फिर से आर्थिक सुस्ती के गर्त में धकेल देगी ?

अब जबकि कोरोना वायरस का प्रकोप पूरी दुनिया में फ़ैल चुका है।  वित्तीय बाज़ारों में क़तल ऐ आम मचा हुआ है।  निवेशकों को हर हफ्ते खरबों डॉलर का नुकसान हो रहा था।  आज  दस वर्ष के अमेरिकी बांड पर रिटर्न एक प्रतिशत से भी काम रह गया है, तो बहुत से लोग खुद को आर्थिक सुस्ती के लिए मानसिक तौर पर तैयार कर रहे हैं।

कोरोना वायरस का संक्रमण फैलने से पहले , दुनिया के कई बड़े निर्यातक देशों में उत्पादन  सेक्टर का आउटपुट (PMI) 2019 में लगातार गिरयात की ओर बढ़ रहा था।  व्यापारिक संघर्ष के तनावोंki वजह से जो अनिश्चिता उत्पन्न हुई थीम उस कारन से जापान , जर्मनी और नार्थ कोरिया जैसे कई देश में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का आउटपुट गिर रहा था और मैन्युफैक्चरिंग का वैश्विक PMI 50% से भी नीचे चला गया था . जिसका मतलब था की वर्ष 2019में विश्व की अर्थवयस्था आधिकारिक रूप से सिमट रही थी ।  ‘पुराने औधोगिक’ और सामान के उत्पादन की इस गिरावट के दौरान सेवा  क्षेत्र और उपभोक्ता बाजार के विस्तार के चलते विश्व अर्थवयस्था ली गतिविधियों में प्रगति हो रही थी , फिर दुनिया के विकासशील देश हो या विकसित देश, दोनों में सेवा क्षेत्र और उपभोक्ता बाजार में ही रोज़गार के अधिकतम अवसर उत्पन्न हो रहे थे।  इन्ही कारणों से वित्तीय बाज़ारों में उछाल आ रहा था और निवेश पर अच्छा रिटर्न मिल रहा था।

लेकिन, आज कोरोना वायरस के संक्रमण ने सीधे उपभोक्ताओं  केंद्रों यानी चीन और एशिया की अन्य प्रमुख अर्थव्यस्थाओं पर प्रहार किया है, इसका नतीजा ये हुआ की विकास के इन दो क्षेत्र में आर्थिक गतिविधियां ठहर गयी है। इस बात की सम्भावना अधिक है की इन देशों में उत्पादकता के पूर्व स्तर तक पहुंचने की प्रक्रिया बेहद तकलीफदेह और धीमी गति वाली होगी और इसी कारण से उपभोक्ताओं की क्रय क्षमता विकसित होने और बाजार की चमक दोबारा वापस आने में भी अधिक समय लगेगा। जहाँ तक सप्लाई चेन की बात है चीन ने केवल इनके क्षेत्रीय व्यापारिक सरप्लस के संग्राहक की भूमिका  (जापान और नार्थ कोरिया जैसे अन्य देशों से इनपुट जुटा कर फिर इन उत्पादों का मूल्य बढ़ाकर इन्हें निर्यात करना ) निभाई है, बल्कि वो इन तैयार उत्पादों के कच्चे माल और प्रबंधन एवम नियमन में भी योगदान दे रहा है , यहाँ तक की व्यापार युद्ध के बावजूद अमेरिका और अन्य देशों की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों अपने उत्पादों के कल-पुर्जे के लिए चीन पर निर्भर है।  कोरोना वायरस के प्रभाव से तमाम कच्चे माल की सप्लाई चेन में आ रही समस्या बहुत ही कम्पनियाँ अपने उत्पादों के मूल्य निर्धारण करने की क्षमता खो चुकी हैं, अब उनका निर्धारण ग्राहकों के हाथ में चला गया है।  इसी की वजह से वो टैरिफ बढ़ने से बड़ी लागत के बावजूद अपने उत्पादों का मूल्य बढ़ाने में असमर्थ साबित हो रही हैं।  लेकिन , आज बहुत सी ऐसी कम्पनियों के पास अपने सामान की कीमतें बढ़ाने के सिवा कोई चारा नहीं बचा है, इसलिए ऐसी बहुत सी कंपनियों को ये भय है की उनके ग्राहक हाथ से निकल जाएंगे। 

ऐसा लग रहा है की वायरस की संक्रमण की आशंका और भय के कारण सेवा क्षेत्र और हॉस्पिटैलिटी सेक्टर  की गतिविधियों में दोबारा सक्रियता लौटने में काफी समय लगने वाला है। अमेरिका भी इसकी भयावता को खूब समझ रहा है, क्युकी वहां S&P कम्पनियों का 43% का राजस्व दूसरे देशों से आता है, इनमे भी एशियाई देश उनके सबसे ज्यादा तेज़ी से विकसित हो रहे बाज़ारों में यूरोपीय देश इससे थोड़ी ही कम विकास दर के साथ दूसरे नंबर पर आते हैं। ऐसे में आज कोई भी देश या कंपनी बाकी दुनिया से अलग दिवप् नहीं रह गए हैं और अमेरिका की बहुत सी कंपनियां अपनी सेवाओं और विस्तार लिए कोरोना वायरस के प्रकोप से प्रभावित क्षेत्रों पर निर्भर है। 

आज कोरोना वायरस को लेकर जिस तेज़ी से भय फ़ैल रहा है, तो ज़मीनी हक़ीक़तों से   वाबस्ता रहना बेहद महत्पूर्ण है।  और जहाँ तक संभव हो, वहीँ तक भविष्य को लेकर दूरदर्शी रखना ठीक होगा।  हो सकता है की कोरोना के कारण मध्यम और छोटे दौर के लिए बाज़ारों में उठा-पटक देखने को मिलती रहेगी।  लम्बे समय की प्रगति के लिए कौन से विचार अधिक प्रभावी होंगे और पूँजी वितरण के लिए किन सिद्धांतों पर अमल करना अधिक असरदार होगा ? और मंदी के इस दौर में किस तरह से लाभ कमाया जा सकता है ? सेवा क्षेत्र और उपभोक्ता कम्पनियों की बात करें, तो आर्थिक सुस्ती के इस दौर में उनके कौन से उत्पाद और सेवाओं को नए सिरे से ग्राहकों को लुभाने के लिए परिवर्तित किया जा सकता है ? वैकल्पिक पूँजी निवेशकों के लिए स्थानीय पूँजी बाजार को कहाँ स्थानांतरित करने से प्रगति के नए अवसर प्राप्त हो सकते हैं ? आगे ये देखना बहुत महत्वपूर्ण होगा।


शिशिर कान्त सिंह

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